ये मेरा और तुम्हारा संवाद है कृष्ण Meenakshi Dikshit द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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ये मेरा और तुम्हारा संवाद है कृष्ण

1. हमारे प्रेम के अमरत्व का पल

तुम्हारा स्वर सदा की तरह,

आत्मीयता के चरम बिंदु सा कोमल था.

आगे महाभारत है,

अब वापस आना नहीं होगा.

तुम मेरी शक्ति हो,

तुम्हारे नयन सजल हुए,

तो मैं पराजित हो जाऊंगा.

नहीं माधव !!

और मैंने, आतुर खारे जल को,

पलकों तले, कंकड़ बन जाने दिया था.

चुभते हुए उन कंकड़ों ने,

तुम्हारे कमल नयनों में बिखर गयी

ओस की नमी देखी थी.

क्षितिज की ओर जाते,

रथ के पहियों ने,

रेणु पर्जन्य बना दिए थे.

उन्होंने सब कुछ ढक दिया था.

संभवतः उस पल में स्तंभित करने के लिए.

जिनमें मैंने तुम्हारे कमल नयनों में बिखरी,

ओस की नमी देखी थी.

जानते हो #कृष्ण,

वही हमारे प्रेम के अमरत्व का पल है.

2. तुम्हारे प्रयाण के बाद

मैं उन पलों में ठहरी हूँ,

तुम जा रहे थे,

मैं पथरायी आँखों से देख रही थी,

नमी को रोक दिया था मैंने पलकों पे,

ताकि अन्तिम दृष्टि तक तुम्हें देख सकूं.

देखते ही देखते,

तुम गोधूली के बादलों में खोकर

ओझल हो गए थे.

जानती थी,

भविष्य के गर्भ में महाभारत है,

तुम अब कभी वापस वृन्दावन नहीं लौटोगे.

सूरज ढल चला था,

वृन्दावन की धरती का ऋण मुझ पर बाकी था.

पावों को वापस सन्नाटे भरी कुञ्ज गलियों में घसीट रही थी.

तभी लगा तुम्हारी बांसुरी कहीं पुकार रही थी,

तुम्हारा पीताम्बर उस अँधेरे में सूर्य-किरण सा लगा,

तुम्हारा श्यामल वर्ण जमुना में घुला सा लगा,

और तुम्हारी भुवन-मोहिनी मुस्कान,

आकर मेरी पलकों पे बैठ गयी.

ठहर गयी हूँ तब से,

तुम्हारे जाने के पीड़ा में डूब जाऊं

या हर पल में तुम्हारे होने का उत्सव जियूं

बताओ #कृष्ण ?

3. तनिक और जानना है तुम्हें

तुम्हारे अद्भुत अनुराग की साक्षी हूँ मैं,

कई –कई रूपों में,

स्नेह रस में भीगती, डूबती !!

किन्तु ऐसा क्यों लगता है,

अभी कुछ और पाना है I

स्नेह का वो कौन सा स्वरुप है,

जिसमें तुम नर के स्नेही हठ का मान रखने के लिए,

अपनी प्रतिज्ञा भी तोड़ देते हो !!

उठा लेते हो शस्त्र, जबकि

तुम्हें उसका प्रयोग करना ही नहीं था !!

वो कौन सा बंधन है,

जो नारायण को नर के लिए,

अश्रु बहाने को विवश करता है !!

वो कौन सा सम्मोहन है,

जो नारायण को नर के सामने ,

हाथ जोड़ प्रणाम करने को विवश करता है !!

माधव ये कोई संशय नहीं,

भ्रम या ईर्ष्या भी नहीं,

बस तुम्हें जितना अभी तक जानती हूँ,

उससे तनिक और जानने की अभिलाषा है I

तुम्हारे जितना निकट हूँ,

उससे तनिक और निकट आना चाहती हूँ I

अपने अद्भुत स्नेह के इस पक्ष से

मुझे आलोकित करोगे ना?

#कृष्ण

4. तुम एक और मैं अनेक

तुम अद्भुत अनुरागी हो।
जब मैं राधा होती हूँ, तुम
सम्पूर्ण कृष्ण होते हो।
जब मैं कृष्णा होती हूँ, तुम
सम्पूर्ण मधुसूदन होते हो।
जब मैं रुक्मिणी होती हूँ, तुम
सम्पूर्ण द्वारिकाधीश होते ही।
जब मैं मीरा होती हूँ, तुम
सम्पूर्ण गिरधर गोपाल होते हो।
मेरे हर भाव के अनुसार,
पूर्ण- सम्पूर्ण।।
बस मैं ही अंश अंश ,
कभी राधा, कभी कृष्णा, कभी रुक्मिणी

और कभी मीरा होती रहती हूँ।
#कृष्ण

5 प्रेम की सम्पूर्णता

तुम्हे सम्पूर्णता में पाने के लिए,

मैं भी सम्पूर्ण होना चाहती हूँ.

पूरी राधा, पूरी मीरा, पूरी याज्ञसैनी,

और एक चुटकी रुक्मिणी होना चाहती हूँ.

जैसे तुम हो, पूरे कान्हा, पूरे गिरधर गोपाल,

पूरे मधुसूदन और एक चुटकी द्वारिकाधीश.

#कृष्ण

6. मैं तुम और होली

रंग भी तुम्हारे,

हम भी तुम्हारे.

जैसा चाहो रंग दो.

पीताम्बर सा पीला, या

फिर जमुना जल सा नीला.

बंसी धुन सा मीठा, या

फिर नैनों जल सा खारा. #कृष्ण #होली #रंग

7. हमारा वसंत

जानते हो,

वो जो तुम्हारे पीताम्बर से,

हर पल मेरे भीतर, बसंत झरता रहता है,

वो थोड़ा सा बाहर बिखर गया है।

पीली सरसों फूल गयी है

आम्रवृक्ष बौरा गये हैं

भ्रमरगुँजन कर रहे हैं

कोकिला कुहुक रही है

मुरझाए सूर्यदेव भी चमक उठे हैं।

अभी रति ने पूछा,

ये थोड़ा सा छलका हुआ वसंत है, तो

सृष्टि इतनी मदमस्त है

जहां बसंत हर पल झरता है

वहां कैसा लगता है?

बताओ, रति को क्या उत्तर दूं?

#कृष्ण #बसंत #प्रेम #अमृत #रस